मुखिआ मुखु सो चाहिऐ
हम संसार को अनादि मानते हैं। मनुष्य अनादि काल से विकास के लिए जुटा है। विकास के प्रयास में ज्ञान भी संसाधन है। बल भी संसाधन है। विकास में हमारा व्यवहार, परस्पर सौहार्द्र और प्रेम भी संसाधन है। विकास की जो भावना है, वह हम सब लोगों में है। हम ब्रह्म के अंश हैं, ब्रह्म का स्वभाव ही विकासशील है। जो निरंतर विकासशील हो, वही ब्रह्म है, जो महान है, वही ब्रह्म है। हमारे मन में भी विकास की भावना निरंतर है, हमारा, ज्ञान बढ़े, सुंदरता बढ़े, लोग इसमें लगे रहते हैं, परिवार बढ़े, कीर्ति बढ़े, व्यवहार भी बढ़ाता है, पहचान भी बढ़ती है। विकासशील स्वभाव को सही तरीके से नहीं समझने की वजह से ही भ्रष्टाचार में संसार लिप्त हो गया है।
इसी क्रम में मैं कहना चाह रहा हूं कि विकास के इस भाव के साथ जुडऩे के बाद सतत विकास की भावना ऑटोमेटिक है। विकास के लिए मैं रामराज्य का एक उदाहरण देना चाहूंगा। एक वृतांत सुनाना चाहूंगा। जब भगवान श्रीराम मान गए कि भरत जी जो कहेंगे, वहीं करूंगा। भरत जी ने कहा कि आप जो कहेंगे, मैं वही करूंगा। भरत जी पहले मना रहे थे कि भइया राम, आप राजा बनें, मैं जंगल में रह लेता हूं, या दोनों ही जंगल में रह लेते हैं। आप जैसे खुश हों, वैसा हम करने के लिए तैयार हैं। भरत जी ने कहा कि चरण पादुका दे दीजिए। उसी को राजा मानकर राज्य चलाऊंगा। तो भरत जी ने पहले सारे प्रयास किये कि राम जी लौट चलें। जिस तरह से अनुपम प्रयास भरत जी ने राम जी को मनाने के लिए किये, वैसा इतिहास में पहले भी नहीं था और वह भविष्य में भी तभी होगा, जब राम जी फिर प्रकट होंगे। राम जी जैसे राम जी हैं और भरत जी जैसे भरत जी। गगन के समान दूसरा गगन नहीं है, राम के समान दूसरे राम नहीं हैं।
यहां भ्रष्टाचार के सम्बंध में मैं एक संदेश राम चरित्र के माध्यम से देना चाह रहा हूं। जब चरण पादुका मिल गई, भरत जी आश्वस्त हुए कि १४ वर्ष बाद राम जी आएंगे। तब तक उनकी चरण पादुका को ही राजा मानकर समय व्यतीत करूंगा, प्रतीक्षा करूंगा राम जी के आने की। भरत जी चरण पादुका को सिर पर रखकर खड़े हैं। राम जी ने सोचा कि सब हो गया है, भरत जी जा नहीं रहे हैं। बाद में उनको ध्यान आया कि भरत पूछ रहे हैं कि १४ साल तक चरण पादुका राजा रहेगी, मैं सेवक रहूंगा। राज ऐसे ही नहीं चलता है, राज चलाने का कोई सूत्र भी तो बताइए ताकि राज्य रामराज्य के अनुकूल चले। आप आएं, तो राम राज्य की नींव भरी भराई मिले। कहना चाहिए कि रामराज्य की संस्थापना राम जी ने नहीं की, यह काम भरत जी ने किया। रामराज्य का सारा भवन तैयार करके भरत जी ने रखा था। १४ साल कम नहीं होते। आज के एक लोकसभा कार्यकाल से लगभग तीन गुना ज्यादा समय होता है। आखिर वह क्या सूत्र है, जिसका पालन लोग करें, तो कहीं कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा। भ्रष्टाचार कैसे दूर होगा, यह समस्या पूरी दुनिया की है। एक आदमी को जो ज्यादा कमाने वाला है, अपने बच्चों को अपनी पत्नी को अपने चहेतों को, परिवार को ही उपकृत करता है। सम्मान देना, सुविधा देना, घुमाना। भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्या सूत्र है? भ्रष्टाचार कहां से शुरू होता है? महंतों में भ्रष्टाचार की बात सुनेंगे, तो आप हैरान हो जाएंगे, महंत जी के लिए बहुत प्रकार के व्यंजन बन रहे हैं और ठाकुर जी को खिचड़ी भोग लगा देते हैं। यह तो ए. राजा वाले भ्रष्टाचार से भी ज्यादा भ्रष्टाचार है। बहुत से लोग ए राजा को भी सैल्युट मारते होंगे, करुणानिधि को भी और मैडम को भी। ए. राजा के साथ बड़े-बड़े लोग थे, किन्तु पूरा का पूरा बड़ा घोटाला हो गया।
तो राम जी ने सूत्र दिया भरत जी को। कैसे चलेगा राम राज्य? राम जी ने कहा,
‘मुखिआ मुखु सो चाहिऐ, खान पान कहुं एक।
पालइ-पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।।
मुखिया को मुख के समान होना चाहिए। यह तो बिलकुल लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स दृष्टांत: हो गया। एक ऐसा उदाहरण, जो हर मूर्ख को भी समझ में आएगा और विद्वान को भी। खाता मुंह है, लेकिन जो ऊर्जा बनती है, वह अपने पास नहीं रखता। बालों को देता है, रोमों को देता है, हाथ को पैर को देता है, नाक, कान को देता है, हर अंग को देता है। यदि सारी ऊर्जा अपने पास रख लेता, तो राक्षस जैसा मुंह हो जाता। बाकी अंगों को पता ही नहीं चलता। तो मुखिया मुख सो चाहिए। हर आदमी को कपड़ा, अनाज चाहिए, संसाधन चाहिए, लेकिन आप दूसरे सहयोगियों का हिस्सा भी अपने में ही लगा लेंगे, तो आपके जीवन में रामराज्य नहीं आएगा, परिवार में नहीं आएगा। भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े उदाहरण आ रहे हैं, आप लोगों को ध्यान होगा कि किस तरह से भ्रष्टाचार फैला है, भ्रष्ट लोग अपने भाई को ही वह नहीं दे पाते हैं, जो उन्हें मिलना चाहिए, अपने पड़ोसी, अपने रिश्तेदारों को भी नहीं दे पाते हैं। एक ही उदाहरण है, मुखिया मुख सा चाहिए। मुख से बड़ा कौन होगा, मनुष्य जीवन सबसे अच्छा जीवन और उस जीवन को भी चलाने, शक्ति देने, सुन्दर बनाने के लिए शक्ति मुख से ही मिलती है। मुख रहेगा, तो परिवार रहेगा, देश रहेगा, संसार रहेगा। मुख नहीं रहे, तो कोई मतलब नहीं। इस मशीन का ज्ञान हर आदमी को है, यह मुख उपदेश के रूप में हम सबके साथ-साथ घूम रहा है। गुरु छूट जाएगा, शिक्षक छूट जाएंगे, अपने लोग छोट जाएंगे, लेकिन मुख पीछे नहीं छूटेगा, राम जी ने ऐसा उदाहरण दिया।
इसलिए भ्रष्टाचार के लिए बार-बार लोगों को यह बताने की जरूरत है, मुख की याद दिलाने की जरूरत है। आप ए. राजा हों, आप अंबानी या टाटा या बिल गेट्स जैसे अमीर हों, आपको शिक्षा लेनी है, तो मुख से लीजिए। जो हमने कमाया है, वह धन, बल, यश सब कुछ केवल हमारा ही नहीं है। पार्टी का कार्यकर्ता काम करता है, तो पार्टी जीतती है, लाभ का बंटवारा भी होना चाहिए। मुख्यमंत्री आप बन गए, आप अपने कार्यकर्ताओं को नहीं पूछेंगे, तो क्या आप अगली बार मुख्यमंत्री होंगे क्या? वैसे ही किसी भी क्षेत्र में ऊर्जा का, शक्ति का सम-वितरण होना चाहिए। किन्तु ध्यान रहे, जांघों को जितनी शक्ति चाहिए, उतनी हाथों को नहीं चाहिए। जांघों को पूरे शरीर का वजन उठाना है। जितनी और जैसी शक्ति दिमाग को चाहिए, वैसी और उतनी किसी दूसरे अंग को नहीं चाहिए। हवाई जहाज में जो ईंधन लगता है, वह सामान्य गाड़ी वाला नहीं होता, वह अलग गुणवत्ता का होता है। मैं डॉक्टर तो नहीं हूं, लेकिन यह कह सकता हूं कि सबसे महत्वपूर्ण ब्रेन है, दिमाग है, सबसे अच्छी ऊर्जा यहां लगती है या लगनी चाहिए। पैर बोले कि हमें भी वैसी ही ऊर्जा दीजिए, जैसी दिमाग को मिल रही है, तो यह बात जमेगी नहीं। यह नहीं कहना चाहिए कि अधिकारी को जो मिले, वही द्वारपाल को भी मिले।
भगवान ने जैसी व्यवस्था की है, उसमें जिसकी जैसी योग्यता, उसी के अनुरूप ऊर्जा स्वयं वहां पहुंच जाती है, उतनी ही पचेगी, उससे ज्यादा पचेगी नहीं। भ्रष्टाचारियों को और जो उनके कारण पीडि़त हैं, उन्हें भी मुख से सीखना चाहिए। कमाई का सम-वितरण होना चाहिए, जिसको जितना चाहिए, उसे उतना मिलना चाहिए। ऐसा होगा, तो कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा। सभी लोग रोज आईना देखते हैं कि कितना सुन्दर है मुख, किन्तु उन्हें मुख के योगदान पर भी विचार करना चाहिए, मुख के उस स्वरूप को देखना चाहिए, जो राम जी दिखाना चाहते थे।
(जगदगुरु के एक प्रवचन से)