कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता । माया गुअन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा । कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ॥
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥
जाति पाँति पूछै ना कोई । हरि को भजै सो हरि का होई ।।जाति पाँति पूछै ना कोई । हरि को भजै सो हरि का होई ।।जाति पाँति पूछै ना कोई । हरि को भजै सो हरि का होई ।।जाति पाँति पूछै ना कोई । हरि को भजै सो हरि का होई ।।