सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणो मताः ।।सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणो मताः ।।सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणो मताः ।।सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणो मताः ।।
संप्रदाय > विष्णु स्वामी

                                            ii जगद्गुरु श्री विष्णु स्वामी ii

जगद्गुरू विष्णु स्वामी जी वास्तव में निम्बाकाचार्य, मध्वाचार्य श्री रामानन्दाचार्य जी से ही पहले 10 वी शताब्दी में हुए थे (वैष्णव धर्म लेखक आचार्य चतुर्वेदी) परन्तु इनके जन्ममाल के बारे में केई विद्वानों के अलग-अलग मत है । श्री के.सी. वैष्णव के शोध के अनुसार आपका जन्म वि.स. से 680 वर्ष पूर्व श्रवण कृष्ण सप्तमी माना है । आपके पिताजी का नाम श्री देवेश्वर भट्ट (गोपाल भट्ट) था व माता जी का नाम यशोमती देवी था। आपका जन्म मथुरा में हुआ व भट्ट ब्राह्मण थे

वि.स. से 600 वर्ष पूर्व द्रविड़ देष के एक क्षत्रिय राजा थे उसके पास विष्णु स्वामी के पिता मंत्री पद पर थे, इनके कोई संतान नहीं थी पुत्र प्राप्ति के विचार से उन्होंने भगवान की आराधना प्रारम्भ कर दी, अन्त में भगवान प्रसन्न हुए और उनके पुत्र पैदा हुआ, इस पुत्र का नाम विष्णु रखा गया ।

शिक्षा-दीक्षा – भगवान की दिव्य विभूति होने के कारण बाल्यकाल से ही इनमें अलौकिक गुणों के आभास दिखाई देने लगे आपके यज्ञोपवित्र संस्कार के कुछ समय पश्तात ही गुरू श्री त्रिलोचनाचार्य जी से दीक्षा ली व अन्य गुरू श्री शुकदेव जी व न्यास जी के गुरूस्व में वेद वेदान्त, पुराणादि ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था

उपासना – आपने वेदों का अध्ययन करने के बाद, उपनिषदों की शरण ली और वृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार अपनी उपासना प्रारम्भ की, परन्तु उन्हें भगवत प्राप्ति नहीं हुई तब इन्होंने अन्नजल का त्याग कर दिया, सात दिन अन्न जल छोड़े हुए हो गए, तब प्रभु के वियोग में शरीर को समाप्त करना चाहा, तभी उनका हृदय एक विषेष प्रकार के प्रकाष से भर गया, आखें खोली तो सामने श्री श्यामसुन्दर , पीतापम्बरधारी, त्रिभंगी ललित स्वयं भगवान खड़े थे, स्वामी जी एकदम भगवान के चरणों पर झुक गए । भक्तवत्सल भगवान ने अपनी बाहों को फैलाकर विष्णु स्वामी को उठाकर अंक में भर लिया और मुस्कराने लगे अपनी तुसली की माला श्री विष्णु के गले में डाल दी। श्री श्यामसुन्दर ने , श्री विष्णु स्वामी को उपनिषदों के अभिप्रायों के सम्बन्ध में उत्पन्न कुछ सन्देहों का निराकराण कर उपदेष दिया कि मैं ही परम तत्व हूँ। माया, जगत, ब्रह्म मेरे अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, मैं ही निर्गण, साकार, निराकार सब कुछ में ही हूँ । अतः सभी प्रकार की शकाओं को त्याग कर मेरा ही भजन करो । अन्त में विष्णु स्वामी ने भगवान से आग्रह किया कि आप अंतर्ध्यान न हो व मुझे इसी तरह दर्शन देते रहे या मुझे भी साथ ले चलें । भगवान ने कहा कि यह संभव नही है भगवान ने एक मूर्तीकार को बुलाकर अपनी शक्ल की मूर्ती बनवाई व स्वयं विग्रह में प्रवेश कर गए । श्री विष्णु स्वामी ने उस विग्रह को भगवान मान कर बाकी का जीवन कृष्ण भक्ति में बिताया ।

 रूद्र सम्प्रदाय- श्री रून्द्र देव के उपदेश शिष्य परम्परा से चलता हुआ विष्णु स्वामी को प्राप्त हुआ अतः सर्व प्रथम वेन्दान्त भाष्कर श्री विष्णु स्वामी ने ही शुद्ध द्वैतवाद का भक्ति प्रचार किया इसलिए इनके द्वारा चलाया गया धर्म प्रचार को रूद्र सम्प्रदाय कहा गया ।

ग्रन्थ- डा. भण्डाकर के अनुसार श्री विष्णु स्वामी के तीन ग्रन्थ उपलब्ध है ‘‘सर्वज्ञ सूक्त‘‘ वहदारण्यक तथा मुण्डक उपनिषेदों पर टीका अन्य उपलब्ध नहीं है ।

शिष्य – श्री विष्णु स्वामी के कई शिष्य थे जिनमें विल्वमंगल, श्रीधर स्वामी, श्री देवदर्ष, श्रीकण्ड, सहरच्चाचार्य, शत्तधृति, परभूति आदि प्रमुख थे, जिन्होंने आपका भगवत भक्ति का प्रचार किया ।

सम्प्रदाय पीठ व द्वारे- An out line of Religeous litraure of India के अनुसार आपका मुख्य पीठ कामवन वन्दावन में है तथा इनके षिष्यों द्वारा दो स्थानों पर द्वारे स्थापित है ।

गौत्र   द्वाराचार्य      स्थान

  1. गोकलानन्दी श्री विठल्लनाथ जी    गोकुल (मथुरा)

  2. विठलानन्दी श्री वल्लभाचार्य जी    नाथद्वारा (राज)

जाति पाँति पूछै ना कोई । हरि को भजै सो हरि का होई ।।जाति पाँति पूछै ना कोई । हरि को भजै सो हरि का होई ।।जाति पाँति पूछै ना कोई । हरि को भजै सो हरि का होई ।।जाति पाँति पूछै ना कोई । हरि को भजै सो हरि का होई ।।