यह आश्रम श्रीमठ की विकास यात्रा का समुज्जल उदात्त तथा प्रेरणादायक स्वरुप है। इसे 1991 ई. में श्रीमठ को समर्पित किया वर्तमानचार्य के दीक्षागुरु, संप्रदाय की विद्या एवम् साधुता विभूति तथा परमसिद्ध पं. श्रीराम वल्लभशरणजी महाराज जानकी घाट-अयोध्या के शिष्य श्रीमहान्त रघुवर गोपाल दास वेदांती ने। श्रीमठ के लिए संप्रदाय की ऒर से यह सबसे बड़ा सेवा अवदान है, जो अविस्मरणीय है। यह पंच मंजिला आश्रम सन्तों-छात्रों एवं भक्तों का मर्यादित एवं सुखद बसेरा है।
इसका अमराबापू सभागार संप्रदाय ही नही अपितु कशी का गोरव बर्धक साहित्यिक सांस्कृतिक विद्वत सम्मेलनों महात्माओं की जयंती तथा अनेकानेक धार्मिक कृत्यों का अनुपम संपादक स्थल है रामानन्दी साहित्य का बिसाल पुस्तकालय इसकी आध्यत्मिक उपयोगिता है एवम् सुन्दर का घोतक है यह बड़ी पियरी काशी में श्री नागरी नाटक मण्डली के समीप विराजित है। यहाँ प्रायः 50 कमरे लिप्ट की व्यबस्था के साथ अत्याधुनिक ढंग से निर्मित है ।