वर्तमानाचार्य श्रीरामनरेशाचार्य जी भारतीय विद्याओं एवम् कलाओं के प्रति विशेष सचेष्ट दिखाई पड़ते है ।वेद पाठ कर्मकाण्ड इत्यादि विद्याओं के संरक्षण के साथ विगत चारवर्षों से श्रीमठ संगीत महोत्सव का आयोजन पंचगंगा के सहोदर रामघाट पर प्रतिवर्ष शरदपूर्णिमा के अवसर पर किया जाता है।इस तीन दिवसीय शास्त्रीय संगीत महोत्सव में राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कलाविद साधक अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते है ।महाराजश्री की कृपा से यह समारोह एक और भारतीय विधाओं का संरक्षण कर रहा है तो वहीं स्थानीय लोग इसके रस से सरावोर रहते है।यह संगीत समारोह काशी के महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा चूका है।इसका आयोजन श्रीमठ संगीत महोत्सब समिति द्वारा किया गया है। जगद्गुरु रामानन्दाचार्य द्वारा स्थापित श्रीमठ भारतीय आध्यत्मिक चेतना का शताव्दीयों से केंद्र रहा है इस महान परम्परा के वर्तमान पथ प्रदर्शक जगद्गुरु रामनरेशाचार्य जी महाराज इस गुरु दायित्व का रजत जयंती वर्ष पूर्ण कर रहे है महाराज श्री ने अपने पथिकृत दर्शन व कार्यशैली से न केवल समकाल को बल्कि भविष्य को भी आलोकित किया है ।
आध्यतिमक चेतना के साथ साथ सांस्कृतिक व सांगीतिक उन्नति की दिशा में श्रीमठ ने वाराणसी में गौरवमयी परम्परा की श्रीबृद्धि की है महाराज जी कहते है।ज्ञेयम् गीता अर्थात गीता गायन योग्य है गायन अथवा संगीत गीत जैसा पवित्र है महाराज जी के श्री प्रवचनों से हमे मिला है इस सत्य का बोध और उसी बोध से बोधोंमय हुआ है श्रीमठ प्रायोजित कोजागरी शास्त्रीय संगीत महोत्सव ।
शास्त्रीय संगीत प्रारम्भिक वर्ष2010 में शरदपूर्णिमा पर आयोजित ‘कोजागरी’ महोत्सव के स्नेह निमन्त्रण में लिखा था।
काशी में पंचगंगा घाट पर गंगा जो हमारी अद्वैत आस्था की प्रतीक है अपने में में कृष्ण भक्ति से स्नात यमुना तथा चेतना की सरस्वती को समेटे हुए पश्चाताप की धूतपापा और परा अभ्युदय की किरणा की धाराओं से मिलकर एक महासंगम का निर्माण करती है ।इस पावन तट पर स्थित “श्रीमठ” रामानन्द सम्प्रदाय की मूल आचार्यपीठ तथा मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन और उसकी सगुण और निर्गुण दोनों ही धाराओं की गंगोत्री है।रामभक्ति की लोक चेतना के प्रवर्तक जगद्गुरु स्वामी रामानन्द जी ने ईस्वर साक्षात्कार की दिशा में ज्ञान रुपी राजपथ के समान्तर भेद रहित व जनसुलभ भक्ति।का जनपथ प्रशस्त कर भारत में आध्यत्मिक गणतन्त्र कि भवभूमि को आधार प्रदान किया “ जाति पाति पुछै नहिं कोई, हरि को भजै सो हरि का होई” जैसे चमत्कारिक उदघोष के साथ उन्होंने ब्राह्मण अनंतानंद व नरहर्यानन्द ही नही जुलाहा कबीर,चर्मकार रैदास,क्षत्रिय पीपा,जाट धन्ना,नाई सेन और यहाँ तक की उपेक्षित नारी समाज की पद्मावती व् सुरसुरी तक को न केवल दीक्षा दी बल्कि उन्होंने अपनें अपनें स्वत्रंत मतों का आचार्य भी बना दिया।फलत: कठिन संक्रमण काल में संस्कृति की रक्षा हुई और समाज एवम् राष्ट्र में विघटन का निषेध हुआ। वर्तमान पीठाधीस्वर जगद्गुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी परम्परा तथा सनातन धर्म में भक्ति के उन्ही उदात्त आदर्शों के संवाहक हैं तथा देशभर में प्रशस्त धार्मिक प्रवत्तियों के साथ नियोजित उत्सवों एवम् अनुष्ठानो के साथ साथ अनेक क्षेत्रों में की जा रही आध्यात्मिक एवम् लोक कल्याणकारी प्रवतियों को उत्कर्ष प्रदान रहे है।
श्रीमठ द्वारा आयोजित पर्वो की श्रृखला में कोजागरी (शरद पूर्णिमा) एक महोत्सव है,यह मठ द्वारा पूर्ण आध्यात्मिक गरिमा के साथ प्रतिवर्ष प्रायोजित होने वाले दिव्य कार्तिक मास महोत्सव का शुभारम्भ भी है जिसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के देव दीपावली उत्सव से होता है ।शरद पूर्णिमा के दिन ही वैभव जननी श्री लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकाश में आई थीं ।संगीत भी भक्ति का माध्यम है,अस्तु यह आयोजन ‘कोजागरी महोत्सव’ संगीत की पराकाष्ठा को प्राप्त करने का एक प्रयास है ।हम मानते हैं की इस पूर्णिमा से प्रारम्भ होता है दिव्य कार्तिक मास और जो व्यक्ति पंचगंगा के साथ साथ संगीत निहारिका में अवगाहन करता है वह उत्तम पुरुष हो जाता है ।मान्यताओं के अनुसार कोजागरी पूर्णिमा की निशा में आकाश रस वर्षा होती है।
प्रथम वर्ष2010 में यह द्वि दिवसीय आयोजन था जो अगले वर्ष2011 से त्रिदिवसीय हो गया।।