यह श्रीमठ का अन्नसेवा धाम है ; जहाँ दरिद्रनारायण -नर्मदापरिक्रमावासी -संत – विद्यार्थी- भक्त तथा अभ्यागत नित्य प्रति बिना भेद -भाव से अतीव प्रशस्त स्वरूप में प्रसाद ( ग्रहण ) करते हैं । 15 एकड़ में विस्तृत यह तपोभूमि नर्मदा के पवित्र जिलेहरी घाट ( जबलपुर )में स्थित है । यह जबलपुर के धार्मिक स्थान के साथ – साथ पर्यटन स्थल भी है । दशनामी जूना अखाड़ा के परम सन्त स्वामी प्रेमानन्दपुरी के द्वारा संस्थापित तथा उनके शिष्य स्वामी महेन्द्रानन्दपुरी द्वारा संचालित यह आश्रम 1997 ई. में श्रीमठ की सेवा में प्रविष्ट हुआ । स्वामी महेन्द्रानन्दपुरी ने जो वतर्मानाचार्य के विद्याशिष्य थे , श्रीमठ को अर्पित किया । यह उनका अतीव श्लाघनीय प्रदान है । आश्रम के पास सौ एकड़ कृषि योग्य भूमि भी है । आश्रम निरंतर विकास की ओर है । गोपाल पद्मावती संस्कृत विद्यालय , अखण्ड रामायण पाठ, गौसेवा तथा विविध धार्मिक महोत्सवों का संपादन इसकी विशिष्ट उपलब्धियाँ हैं ।
‘जगद्गुरु रामानंदाचार्य मंडपम् ‘ इसका अनुपम गौरववर्द्धक है-जो 116 फिट लंबा 55 फिट चौड़ा तथा 50 फिट ऊँचा सुमंच के साथ विराजमान है । इसका निर्माण 2001 ई. में जगद्गुरु रामानंदाचार्य सप्तशताब्दी महोत्सव की पावन स्मृति में किया गया था । यह महाराजश्री के जगद्गुरुत्व काल की महनीय उपलब्धि है ।