
श्री माधवाचार्य
जगद्गुरु श्री स्वामी रामानन्दाचार्यपदप्रतिष्ठित पूर्वाचार्यचरणचञ्चरीक पूज्य आचार्य श्रीस्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज श्रीसम्प्रदाय की गौरवूपर्ण विभूतियों में एक थे । इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहराइच मण्डलान्तर्गत परमपुर ग्रामवासी एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम श्रीनारायण जी मिश्र था । पिताश्री श्रीसम्प्रदायानुरूप पंचसंस्कारयुक्त ब्राह्मणोचित विद्या, तप एवं त्याग सम्पन्न थे । ये स्वयं संस्कृतानुरागी तथा संस्कृतज्ञ थे । अतः अपने पुत्र को भी संस्कृत सरस्वती की सेवा में विद्योपार्जनार्थ संलग्न करना चाहते थे । पितृपाद के निर्देशानुसार इनका सामान्य संस्कृत एवं मिडल कक्षा तक की हिन्दी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् संस्कृत अध्ययन की ओर उन्मुख होने का संस्कार दिया जाने लगा । इस सन्दर्भ में आपके पिताजी की दृष्टि अपने गुरुस्थान श्रीअयोध्याजी की बड़ी छावनी की ओर गयी । उनके हृदय में यह विचार उठा कि श्रीवैष्णव संस्कारयुक्त संस्कृतविद्या यदि इस बालक को मिले तो इसका तथा मेरे कुल का उद्धार हो जाएगा । अतः ऐसा विचार उठते ही आपने अपने सुपुत्र जो ब्रह्मचारी श्री शिवराम के नाम से संस्कृत थे, को साथ लेकर श्री अवध पधारे तथा अपने मानसिक भावों को आचार्य महान्तथ जी ईश्वरदास जी महाराज बड़ी छावनी, के चरणों में प्रस्तुत किया । महाराजश्री ने इनके भावों को सुना और प्रार्थनानुसार ब्रह्मचारी शिवराम जी को अपने चरणों में लगा लिया । इनके पिता जी इन्हें महन्त श्री ईश्वरदास जी के चरणों पर अर्पित कर घर चले आये । बड़ी छावनी में कुछ दिन निवास के बाद आप श्रीअवधधाम में श्री हनुमानगढी से प्रख्यात स्थान के प्रसिद्ध सन्त श्री बाबा नारायणदास जी जो आपके ग्राम में प्रायः जाया करते थे, पुराने सम्बन्धों के कारण उनके चरणों में रहने लगे और आपने उन्हें से यथाविधि पंचसंस्कार युक्त श्री वैष्णवी विरक्त दीक्षा प्राप्त की । श्री गुरुदेव की आज्ञा पाकर संस्कृत वाङ्मय के अध्ययन हेतु आप काशी पधारे और वहाँ श्री स्वामी भगवदाचार्य, श्रीस्वामी वराचार्य, श्रीस्वामी वासुदेवचार्य सार्वभौम से आपको संस्कृत अध्ययन में सहयोग तथा विशेष प्रेरणा मिली । आप श्रीवैष्णवसम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध तथा काशी की विद्वन्मण्डली में प्रख्यात सन्त-विद्वान् षड्दर्शन पोष्टाचारी, श्री स्वामी रामलक्ष्मणाचार्य जी महाराज की वैष्णवता, वैराग्य, साधुता, विद्या तथा अध्यापन निष्ठा से प्रभावित हो उनकी शरण में रहकर विद्यार्जन करने लगे और उनकी कृपा से रामानन्द सम्प्रदाय में सन्त-विद्वान् तथा षड्दर्शनाचार्य के रूप में आपका नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाने लगा, जिसके फलस्वरूप जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वमी भगवदाचार्य जी महाराज के साकेत गमन के पश्चात् जगद्गुरु श्रीरामानन्दाचार्य के पद पर समस्त रामानन्द सम्प्रदाय की ओर से आपको प्रतिष्ठित किया गया । उक्त गौरवान्वित पद पर आप दस वर्षों तक विराजमान रहे । आपके आचार्यत्वकाल में श्रीसम्प्रदाय अभ्युत्थान की दिशा में अग्रसर होता रहा है । आपने आचार्य पद से अवकाश लेने के कुछ ही माह बाद संवत् २०४५ कार्तिक कृष्ण दशमी शुक्रवार को बातचीत करते हुए अचानक ही श्री अवध में अपनी मानवीय लीला का सम्वरण कर श्री साकेत पधारने का सौभाग्य प्राप्त किया ।
श्रीमठ प्रकाश/३१७