रामानन्द: स्वयं राम: प्रादुभ्रूतो महीतले (अगस्थ संहिता ) अयं निज: परोवेतिगणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।। स्वामी रामानन्द जगद्गुरु पदप्रतिष्ठित आचार्य थे ।रामावत संप्रदाय के आदि प्रवर्तक परब्रह्म श्रीराम हैं। स्वामी रामानन्द इस संप्रदाय के मध्यमाचार्य हैं। जगतजननी श्रीसीता से संबद्ध होने के कारन इसे श्रीसंप्रदाय ,परब्रह्म श्रीराम के कारण रामावत संप्रदाय और स्वामी रामानन्द के कारण रामानन्द संप्रदाय कहा जाता है । संप्रदाय की आदिपीठ काशी में पंचगंगा (गंगा ,यमुना,सरस्वती,किरणा,और धूतपापा ) घाट पर स्थित है।परब्रह्म श्रीराम एवम् जगतजननी श्रीसीता इस संप्रदाय के उपास्य है संप्रदाय का दार्शनिक सिद्धान्त विशिष्टाद्वैत है।जिसका अभिप्राय यह है की ब्रह्म तो विशिष्टता के साथ सत्य है ही जीव और जगत भी सत्य हैं।इस संप्रदाय के साधु संतों को वैरागी कहा जाता है वैरागी उसे कहते है जो सांसारिक मोह माया से मुक्त हो। वर्तमान आचार्य जगद्गुरु पदप्रतिष्ठित स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी हैं।वे काशी में उसी पीठ पर विराजमान हैं।जिस पर स्वामी रामानन्द 716 क्रमशः
परमात्मा के दो प्रकार के अवतार शास्त्रों में स्वीकृत हैं । नित्य एवं नैमित्तिक अवतार । किसी निमित्त अर्थात् विशेष प्रयोजन, जैसे रावण कुम्भकरण, शिशूपाल दन्तवक्र, कंस आदि दुष्टों का विनाश करने हेतु जो अवतार होता है। उसे नैमित्तिक अवतार कहते है i ये अवतार राम-कृष्ण आदि के रूप में यदाकदा होते है। जो अवतार किसी निमित्त विशेष के बिना नित्य निरन्तर संसार के जीवों पर अहैतुकि अनुकम्पा करके सभी युगों में सर्वत्र होते है, उन्हें नित्यावतार कहते हैं । ये अवतार सन्तों, आचार्यों तथा भगवत भक्तों के रूप में होते है । जैसे शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य,निम्बार्काचार्य, रामानन्दाचार्य, चैतन्य महाप्रभु आदि । इन्हीं नित्यावतारों में काशी श्रीमठ पीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज एक अन्यतम ज्वलंत उदारहण है । जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज का अवतार पुण्यभूमि भारतवर्ष के बिहार प्रान्त के भोजपुर जिले में परसीया ग्राम में, पुण्यात्मा पंडित जगन्नाथ शर्मा के पुत्र के रूप में माघ शुक्ल पंचमी, संवत् 2008 तद्नुसार गुरूवार दिनांक 31 जनवरी सन् १९५५ ई. में हुआ ।इनका बचपन का नाम स्वभावतः श्री कृष्ण होने के कारण श्री कृष्ण शर्मा रखा गया, इनकी प्रारम्भिक शिक्षा – दीक्षा जन्मभूमि में हुई । बाल-सुलभ चापल्य से विमुक्त होकर, निरन्तर अध्ययन करना आपका स्वभाव था। संसार से विरिक्ति होने के कारण अल्पावस्था में ही मात्र (14 वर्ष) की आयु में मोह-माया का त्याग कर आप काशी आ गये । यहां सन्त प्रवर श्रीरघुवर गोपलदास जी महन्त से वैष्णवी विरक्त दीक्षा ग्रहण कर आप श्रीकृष्ण शर्मा से श्री रामनरेश दास हो गये । श्री रामनरेश दास जी ने अपने दीक्षा गुरू से ही, सिद्धांत कौमुदी और तर्क-संग्रह का अध्ययन किया । आपने स्वामीलक्ष्मणाचार्य कोष्टाचार्यजी, आचार्य ब्रदीनाथ शुक्ल, पंडित सुब्रह्मण्यम, शास्त्री पंडित गयादीन मिश्र आदि विद्वानों ने न्याय, क्रमशः
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